आहुति

विभा आज 18 बरस की हो गयी है और आज उसकी शादी है। उन शादी के रस्मों के बिच विभा घबरायी हुई सी कभी हँसती कभी मुस्कुराती तो कभी सहेलियों और बहनों के संग नाच लेती। पर विभा के उस मुस्कान के पीछे मरते हुए उसके सपनों को किसी ने नहीं देखा ना उसके ऊपर हँस रहे उसके स्वाभिमान को दम तोड़ते हुए किसी ने देखा। आज तो विभा जैसे खुद के मरने का जश्न मना रही थी। नाच रही थी अपने अंतरात्मा के मौत के मातम में।
वहीँ दूर खड़ी मैं उसे बस निहार रही थी। बचपन से मैंने उसे बढ़ते हुए देखा था। कभी कभी वो मेरे घर भी आया करती थी इसलिए उसे मैं बेहतर समझ पायी। विभा जब भी मुझसे मिलती यही कहती, भाभी मैं खूब पढ़ना चाहती हूँ और पैसे कामना चाहती हूँ। उस वक़्त वो यही कुछ 12-13 बरस की होगी। उसे कहाँ मालूम था कि पैसे कमाने के लिए एक लड़की को सिर्फ पढ़ाई और मेहनत की जरुरत नहीं होती, समाज की बुरी नजर, लोगों के ताने, माँ बाप के बंदिशों और भी कितनी चीजों को पार करना पड़ता है। कहाँ पता उस बच्ची को कि पैसे कमाने के लिए एक लड़की को शिक्षा की जरुरत होती है, माँ बाप के साथ की जरुरत होती है, और अगर समाज भी साथ हो तब ही वो अपने पैरों पे खड़ी हो सकती है, फिर उसे रोकने वाला कोई नहीं होता।
उस दिन मैंने विभा से पूछ ही लिया, विभा तू पैसे कैसे कमाएगी? क्या तू कोई नौकरी करेगी? उसने जवाब में कहा, भाभी मैं एक डॉक्टर बनना चाहती हूँ, लोगों की दुआएं मिलेंगी और मेरे सपने भी पूरे हो जायेंगे। उस बच्ची की बात ने मेरे दिल को छू लिया। अब जब भी वो मेरे पास आती मैं उसके अंदर के सपनों को जगा दिया करती। विभा की माँ एक अनपढ़ औरत थीं, जिसके लिए पति की सेवा ही ज़िन्दगी थीं, और यह ज्ञान उन्होंने विभा को भी देना शुरू कर दिया था। विभा जैसे जैसे बड़ी हुई उसके सपनों को पंख लगते गए। मैं भी चाहती थी कि वह नेक दिल प्यारी सी लड़की अपने सपनों की उड़ान भरे। वह खूब पढ़ती, माँ के घर के कामों में भी हाथ बंटाती, इससे सारे घर वाले उससे खुश रहते। पर कभी किसी ने उसके मन को नहीं टटोला, की वह क्या चाहती थी?
वक़्त बीतता गया, विभा 17 बरस की हो गयी और उसने अपनी बारहवीं भी अच्छे नम्बरों से पास कर लिया। एक तरफ विभा डॉक्टर बनने के सपनो के साथ उड़ान भर रही थी और दूसरी तरफ उसके माता पिता ने उसकी शादी एक 28 साल के लड़के से तय कर दिया। लड़के के बारे में विभा को कुछ मालूम न था, जब उसे ये बात पता चली तो वो मन ही मन हताश हो कर सीधा मेरे पास दौड़ी चली आयी। भाभी मेरे सपनों का क्या होगा ? पापा ने मेरी शादी तय कर दी है। सारी बातें जान कर मैंने उसे समझाया, देख विभा तेरी माँ तो वैसे भी पढ़ी लिखी नहीं है, वो कभी तेरा साथ नहीं देगी और ना कोई और तेरे घर में। तुझे खुद ही कुछ करना होगा। तुझे बात करनी होगी पिताजी से, अगर तू आज चुप रही तो समझ ले पूरी ज़िन्दगी तू चुप ही रहेगी और यही बात तेरी बेटी के साथ होगी और इसी तरह चलता रहेगा। तुझे खुद के लिए नहीं अपनी पीढ़ी के लिए कुछ होगा। वो घर जाती है और अपनी बात रखने का हिम्मत जुटाती है। पर ये समाज जो बेटियों की इक्छा को मार कर ही गंगा नहाता है, उसे कोई क्या समझाए। उसकी बात को कोई नहीं सुनता, उसका बाहर निकलना बंद कर दिया जाता है, और कुछ महीनों बाद उसकी मँगनी हो जाती है।

विभा ने कितनी बार अपनी मँगनी तोड़ने कि कोसिस की पर उसकी अनपढ़ माँ जो पति के चरणों को अपना स्थान समझती है,हर बार उसे अपना वास्ता दे कर रोक लेती है। समय बीतता गया और आज विभा की शादी है। उस से जिसे वो जानती तक नहीं है। बारात दरवाजे पे है, विभा जैसे अपने मौत का स्वागत एक मीठी मुस्कान के साथ करने को सजी धजी बैठी है। उस रात मैं विभा से आखिरी बार मिलती हूँ। विभा मेरे सीने से लिपट कर बस यही कह पाती है कि भाभी मिल लो इस विभा से, आज के बाद जो मिलेगी वो तो कोई और होगी, जिसके सपने उसके पति से शुरू और पति पर ही ख़त्म होंगे। उसकी ज़िन्दगी बस अपने पति की सेवा और अपने सास ससुर के ख्वाहिशों को पूरा करने की होगी। और ये विभा कौन है ? भाभी आज से ये सिर्फ पत्नी, भाभी, बहू, बनकर रह जाएगी। और अगर भूले भटके याद आ भी जाए की मैं विभा हूँ, मेरे सपने थे, तो ये समाज अपने जहर भरे तानों से फिर मुझे मार देगा। “हाय कैसी बहू है ? कैसे संस्कार दिए हैं इसके माँ बाप ने ? इसे नहीं पता एक औरत का जीवन बस उसका पति और ससुराल होता है।” मैं उसे दिलासा देते हुए कि तू बहुत प्यारी है तुझे कौन सताएगा ? सबका दिल जीत लेगी तू, मंडप के तरफ ले जाती हूँ।
उस रात उस अग्नि के आहुति में विभा ने नए सात वचनों को लेते हुए अपने सारे वचनों की आहुति दे दी।
और मैं खड़ी सोचती रही, जो मैंने इसे बोला है, भगवान करे सच हो और ये अपने ससुराल में खुश रहे। पति इसके सपनों को पूरा करने में इसकी मदद करे। पर वहीं दूसरी ओर मन कह रहा था, अगर ऐसा सचमें होता तो हमारे समाज की 90% बेटियां, बहू, पत्नी और माँ बन कर नहीं रह जाती, उनका अपना नाम हमेशा ज़िंदा होता।
लेखिका: ए. राजवीर

Good One
LikeLike
Thankyou 😃
LikeLike
Kahaani bahut hi achi thara se sajaya hai, good. Aage ki stories ka intezar hai.
LikeLike
Wou….. Very nice. Bahut ache se likhi ho.
LikeLike
Thankyou ..every one..!
LikeLike
ये एक विभा की कहानी नहीं बहुत सी विभायो की कहानी है… अगर कोई लड़की पढ़ लिख भी लेती है तो ससुराल वाले नौकरी नहीं करने देते या घर वाले ही कह देते है पढ़ लिया इतना ही काफी है नौकरी कर के क्या करोगी।
LikeLike
बिलकुल सही।
LikeLiked by 1 person
हांजी
LikeLiked by 1 person
Thankyou for your all motivational comments…!! Keep reading…!
LikeLiked by 1 person
My pleasure….🙂🙂🙂
LikeLike
I want you read two posts of mine… one is how many more nirbhayas and second one is Rape.. how you like these posts…🙏
LikeLiked by 1 person
sure
LikeLiked by 1 person
Thank you
LikeLike
Hi, I have nominated you for SUNSHINE AWARD: https://sandhyapandey.com/2020/09/01/sunshine-award/
LikeLike