वो कौन थी?

आखिर कौन थी वो,
अपने दफ्तर की मेज़ पे बैठा सोचता रहा तभी उसके सहकर्मी ने उसे चाय की प्याली पकड़ाते हुए पूछा, क्या हुआ अरुण आज बड़े गुमसुम से हो। अरुण बोला क्या बताऊ कैसे शुरू करुँ। सहकर्मी ने फिर कहा, जहा से मन को कुछ याद आये।
अरुण बोला, बात कुछ ऐसी है की परसो सुबह मैंने एक औरत को देखा, होगी यूँ ही कुछ 30-35 बरस की। उसके सहकर्मी ने कहा फिर क्या हुआ। बेचारी अपने एक दूध मुँहे बच्चे को गोद में लिए रस्ते में भीगते हुए जा रही थी। मुझे जाने क्यूँ वो पहचानी हुई सी लगी। पर उसे सादे लिबास में लिपटे हुए मैं पहचान ना सका। जब मैं घर गया, शाम को बरामदे में बैठा एक पत्रिका पढ़ रहा था, मेरी आँखों ने झपकी लगायी और सपने में आयी वो ही औरत। एक चाय की प्याली के साथ बोली अरुण चाय पी लो। उसका चेहरा सामने आते ही मेरी आँख खुली और मैं सहम गया, ये तो वही औरत थी जिसे सुबह मैंने दफ्तर जाते हुए देखा था। मेरी नज़र मेज़ पर गयी वहाँ एक गरमा गरम चाय की प्याली रखी थी। मन घबरा गया की ऐसा कैसे हो सकता है, की चाय मेरे सामने है। पर ध्यान आया हो सकता है सीता जो की मेरी बाई है, उसी ने आ कर मुझे चाय दी हो, और झपकी की वजह से मुझे वो औरत का चेहरा सीता में दिखा हो। फिर मैं चाय पीने लगा। आश्चर्य तो तब हुआ जब रात को मैं सो रहा था और वो औरत फिर से मेरे सपने में आयी। और मेरे कपड़े जो बहार सूखने को दिए थे, हाथों में पकड़ी हुई बोली, अरुण बाहर तेज़ बारिश शुरू हो गयी, बाकी के कपड़े लाने में मरी मदद करो। और तेज़ बिजली चमकी, मेरी नींद खुली तो सच में तेज़ बारिश शुरू होने ही वाली थी और बिजली चमक रही थी। मैं उठा और बाहर से सारे कपड़े उठा कर अंदर रख कर सोच में पड़ गया। यहां क्या हो रहा है मेरे साथ?
कौन है वो औरत? क्यूँ आ रही है मेरे सपने में? फिर मैं लेट कर सोने की कोशिश करने लगा। बार बार मुझे उसका चेहरा याद आ रहा था। और उस से भी अजीब बात ये थी की वो मुझे कोई पहचानी हुई लग रही थी। बहुत गौर करने पर मुझे ध्यान आया की ये तो शाम्भवी ही है, जिसे मैं बेइन्तेहाँ मोहब्बत करता था। आज 15 साल हो गए हमें अलग हुए। मेरे परदेश में पढाई के दौरान ही उसकी शादी हो गयी थी। और जब मैं वापस आया तो पता चला की उसका पति उसको बहुत सताता है। क्यूंकि उसने 3 लड़कियों को जन्म दिया था। आज 5 साल हो गए मुझे उससे मिले हुए। पर वो यहां क्या कर रही है और सफ़ेद लिबास ? क्या उसका पति गुजर गया ? तभी सोचूँ क्यूँ उसके सपने आ रहे। मेरे मन में तो हमेशा थी वो। आज उसे इस लिबास में मैं पहचान नहीं सका। और सुबह हो गयी, मैं दफ्तर के लिए निकला और अभी तेरे साथ हूँ।
अरुण के सहकर्मी ने फिर कहा की जब तुझे पता है की वो कौन है और सपने में क्यूँ आ जाती है बार बार तो परेशान क्यूँ हो रहा है ?
अरुण जवाब देता है, पता नहीं कुछ समझ नहीं आ रहा।
शाम को अरुण घर जाता है और चाय पिने के बाद अपनी बहन शारदा को फ़ोन करता है। शारदा, हेलो भैया कैसे हो तुम ? सब ठीक है ना ? कैसे याद किया ? अरुण बोलता है, मैं ठीक हूँ, तू कैसी है ? शारदा जवाब देती है, अच्छी हूँ।
अरुण शंकोच भरे शब्दों में बोलता है, शारदा वो हमारे गांव की शाम्भवी क्या उसका पति गुज़र गया ? शारदा चुप हो जाती है, उसे भी मालूम था की अरुण शाम्भवी से शादी करना चाहता था। वो बात को काट ते हुए बोलती है, भैया मैं थोड़ी देर में बात करती हूँ, अभी काम है, और फ़ोन काट जाता है। अरुण कुछ नहीं बोलता।
रात के 9 बजे थे, अरुण का दरवाजा खट खटाती हुई कोई औरत बोल रही होती है, कोई है ? खोलो दरवाजा। अरुण दरवाजा खोलता है, और शाम्भवी उसी सफ़ेद लिबास में एक बच्ची को गोद में लिए हुए सामने खड़ी होती है। अरुण घबराहट में बोलता है, शाम्भवी तुम यहां कैसे ?
वो कुछ नहीं बोलती है। फिर अरुण उसे अंदर बैठने के लिए बोलता है। वो बस रोती रहती है।
कुछ जवाब नहीं देती। अरुण उसे कुछ खाना देकर बोलता है, तुम इसे खा लो, मुझे सुबह दफ्तर जाना है, सामने एक और कमरा है, तुम वहां सो जाना। और अपने कमरे में सोने चला
जाता है। सुबह फ़ोन की घंटी बजती है, और अरुण की नींद खुलती है। शारदा का फ़ोन था। भैया मैं हूँ। कल तुम शाम्भवी के पति के बारे में पूछ रहे थे ना, हाँ शारदा बताओ क्या हुआ ?
भैया उसका पति तो ठीक है ….लेकिन..। लेकिन क्या शारदा ? अरुण बेचैनी से बोला। भैया शाम्भवी ने अपनी जान कुए में कूद कर दे दी। क्या ??
अरुण चौंक जाता है। कब हुआ ये ? भैया 4-5 दिन पहले ही। उसकी सबसे छोटी बेटी बीमार थी, उसके पति ने उसका इलाज नहीं करवाया और वह मर गयी। शाम्भवी की लाश भी अगले सुबह कुए में मिली। अरुण फ़ोन काट देता है, की शाम्भवी तो मर गयी तो यहाँ कौन है ? और जो वो देखता है उससे उसके होश उड़ जाते हैं। कोई नहीं है उसके पूरे घर में। वो यह सोचने लगता है की जो कल रात हुआ वो पहले की तरह सपना तो नहीं था ? पर वो बदहवास हो जाता है जब मेज़ पर उसे खाने की थाली दिखती है जिसमे उसने शाम्भवी को खाना दिया था। खाना भी वैसे ही पड़ा था। तो क्या शाम्भवी की आत्मा रोज़ मिलती रही मुझसे, उस शाम की चाय भी क्या !!!!!!….
लेखिका: अंजल राजवीर

interesting ! 😊
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Thanks..😃
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👍nice.
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Thankyou 😄
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Dilchasp
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Thankyou 😄
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Sukriya… readers..! Apna sahyog banaye rakhen..!
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Achha laga padh ke. Suspence bahut tha
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Right, it was mix of suspense, thrill and love.
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बेहद रोमांचक कहानी 👌🏼
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जी बिलकुल। धन्यवाद आपका कि आपने पढ़ा
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आत्मीयता करीब रहती है ।
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बिल्कुल सही कहा आपने।
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