सफ़ेद सावन
सावन घिर आये
बरखा बहार छाये
कुहके है कोयल
पपीहा भी चहचहाये
दूर किसी नगरी में
एक तृष्णा जिसके नैना
बारहो महीने
नीर है बहाये
सावन की हरी कियारियाँ
हरी चूड़ियां
सबका है
मन लुभाये
पर दूर पड़ी उस बिरहन का मन
सफ़ेद रंगों से लिपटा है जाये
थक गए नैना
नीर बरसा कर
क्या पड़ी है उसको
की सावन है आये
सावन है आये
नाचते हैं मयूर
घनघोर बदरिया है छाये
पर फर्क नहीं उसको
की बदरिया है छाये
जीवन में उसके
अनंत काली बदरियों के हैं साये
करे किस से मिन्नतें
खुदा भी आज क्यूँ न
उसके तन पे
बिजली ही गिराये
हो जाये आज़ाद वो
इस सफ़ेद रंग से
मन उसका
पंछी बन उड़ जाये
सावन है आये
सावन है आये
लेखिका: अंजल राजवीर

Waa…..
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Thankyou so much for your comment.
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Very nice and heart touching poem keep it up❤️😍
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Thank you Hemlata
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👌👌👌
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Thank you so much
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Well written 👌
Keep going👍
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Thank you for your wishes
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Very nice and imotional.
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Thank you so much
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आपके इस कविता से मेरा मन भरमाए,
बिरहन की ये कैसी ब्यथा है,सच में सहा ना जाए !
लिखते रहें,और निराश ना हो !
शुभकानाएं !
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बहुत बहुत धन्यवाद आपकी शुभकामनाओं के लिए।
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Ati sunder khaniya hai agli khani ka intajar hai….
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Thankyou…. very much…!
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