कलेक्टर साहिबा-1
< धैर्य और साहस की एक मिसाल >
लेखिका : अंजल राजवीर
Here’s the first story of our website. The central character of this story is a woman who fights with the adversities of life and makes her way forward. How hard situations life can throw upon someone? Only people with a strong mindset and a lot of patience can make their way through and sustain it. Please read below to know her story. Thanks.
अध्याय 1
शाम के चाय का वक़्त हो चला …….।
महेश आते ही होंगे। दोनों बच्चों के टूशन का समय हो गया है। राधा किचन से चिल्लाई ……आरोही …. रोहन जल्दी से अपनी स्टडी टेबल को ठीक करो …तुम्हारी टीचर आती ही होंगी।
दोनों बच्चे माँ की बात मान कर अपने स्टडी रूम में चले जाते हैं। राधा, महेश के आने के इंतज़ार में शाम के चाय नमकीन में लग जाती है…पर न जाने क्यों आज उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा होता है। वो अपने अतीत को याद करती है जब वो लगभग 18 साल की होगी। “हमारी बेटी राधा कितनी गुणी है ….जिस घर में जाएगी हमें शिकायत के मौका नहीं देगी …..रूप गुण सब में परिपूर्ण है न जी ..” हाँ राधा की माँ तुम एक दम सही बोल रही हो, लेकिन क्या तुम नहीं चाहती की हमारी बेटी हमारा नाम आगे बढ़ाये, शादी से ज्यादा जरुरत हमारी बच्ची को सही शिक्षा की है। माँ मुस्कुराती हुई बोली ‘बेटी को कलेक्टर बनाओगे क्या?’ क्यों नहीं बन सकती हमारी राधा कलेक्टर? मैं उसे खूब पढ़ाऊंगा। राधा मन ही मन अपने पिता के बातों से बहुत प्रोत्साहित हो रही थी। उसने भी ठान लिया था की वो अपने पिता के उम्मीदों पर जरूर खरा उतरेगी। राधा अपने कमरे में अपने उज्जवल भविष्य के सपने को कैसे साकार करना है ये सोच ही रही थी की माँ के चिल्लाने की आवाज से दौड़ते हुए नीचे गयी। ‘पिता जी को क्या हुआ माँ?’ बेटा जा पड़ोस के चाचा जी को बुला ला जल्दी, पिताजी को हॉस्पिटल ले जाना होगा।
हॉस्पिटल में राधा के पिता जी को एडमिट कर माँ बेटी दोनों निःशब्द बैठी थी की डॉक्टर ने उन्हें ये खबर दी की पिताजी को लकवा हो गया है। वो अब शायद ही कभी चल पाएंगे। ये सुन कर राधा और उसकी माँ के तो जैसे जिंदगी में तूफ़ान ही आ गया। पूरा घर पिताजी पे ही तो निर्भर है। इतनी सी उम्र में राधा कैसे संभालेगी अपनी माँ को। कोई सहारा नहीं, माँ भी इतनी पढ़ी लिखी नहीं की कोई नौकरी कर पाए।
राधा की माँ ने अपने भाई को खबर दी। राधा के मामा मामी उनलोगो को लेकर अपने घर चले गए।
क्यों लाये हो इनलोगो को? तुम्हारी कमाई से हमारा तो खर्चा चलता नहीं तुम इन्हे कैसे खिलाओगे? शांत हो जाओ, कहाँ जाती ये लोग राधा के मामा जी ने मामी को समझाते हुए बोला । तुम्हे घर के कामों में हाथ बटाने वाली चाहिए थी न, तो तुम्हारी मदद हो जाएगी। दो साल में राधा की ग्रेजुएशन हो जाएगी फिर सोचेंगे न कुछ। वो तो ठीक है चिल्लाते हुए मामी बोली लेकिन इसके अपाहिज बाप का क्या करोगे ? इलाज के पैसे कहाँ से लाओगे? राधा टूशन पढ़ा सकती है, जब उसकी कॉलेज पूरी हो जाएगी तब सोचेंगे क्या करना है।
दो साल बाद जब राधा ने बहुत ही अच्छे नंबर से कॉलेज की डिग्री पूरी कर ली तो उसने मामा को पिताजी के इच्छा के बारे में बताया की वह कलेक्टर बनना चाहती है। यह सुन कर मामा जी चुप चाप चले गए और मामी को सब बात बताया। उसकी मामी ने कहा सुनो जी इस राधा की मैं अब और नहीं झेल सकती इसकी माँ तो बड़े मुनीम जी के यहाँ दुकान संभल के कुछ पैसे भी लाती है और घर के काम भी करती है, लेकिन ये राधा अपनी टूशन की कमाई से खुद का ही पढाई करती है। इसको रख के कोई फायदा नहीं तुम इसकी शादी करवा दो।
1 महीने बाद ……
राधा के लिए एक अच्छे घर का रिश्ता आया है सब इधर आओ। मामा जी ने चिल्लाते हुए सबको बुलाया। राधा की माँ और उसकी मामी लड़के की तस्वीर को देखती हुई बोलती है लड़का तो अच्छा है …..पर …..भैया …! पर क्या जीजी कितना अच्छा तो है। हाँ उम्र थोड़ी ज्यादा है राधा से तो क्या हुआ, है तो अच्छे घर का। राधा की माँ अपनी भाभी से कुछ नहीं बोल पाती और राधा के शादी का कार्यक्रम शुरू हो जाता है।
राधा निःशब्द एक गुड़िया की तरह कुछ नहीं बोल पाती। बेटी राधा मुझे माफ़ कर दे, तेरी माँ कुछ नहीं कर सकती। राधा की माँ ने रोते हुए दुल्हन बनी राधा को कहा। दोनों माँ बेटी गले लग कर रोये।
आज राधा का ससुराल में पहला दिन है। शादी के भाग दौड़ में वो अपने पति से बात कहाँ कर पाई। रात को थकावट इतनी थी की सो गई। नयी नवेली राधा अपने नए किचन में चाय बनाने को जाती है, तभी दो प्यारे प्यारे बच्चे एक तीन बर्ष की आरोही और एक चार बर्ष का रोहन आकर राधा से लिपट जाते हैं। मम्मा मम्मा दूध पीना है हमें दो ना, राधा मुस्कुराती हुई बच्चों को दूध देती है और सोचती है किसके बच्चे हैं ये ?
अध्याय 2
मुझे माँ बोल रहे हैं। लेकिन कितने प्यारे हैं। और छोटी सी आरोही को गोद में ले लेती है। बेटा मुझे अपनी माँ से मिलवाओ। आरोही राधा को पापा के पास ले जाने बोलती है। राधा जब कमरे में जाती है तो पूछती है बेटा कहाँ हैं आपके पापा ? आरोही तुरंत महेश के गोद में चली जाती है। ये हैं मेरे पापा। राधा को जैसे सांप सूंघ जाता है। महेश ने इतना बड़ा झूठ बोला, क्या वो शादी शुदा है और ये उनके बच्चे हैं? वो महेश पे चिल्लाते हुए बोलती है ‘क्यों छुपाया आपने इतनी बड़ी बात?’ और राधा दूसरे कमरे में चली जाती है।
महेश सोचता रह जाता है। राधा क्यों चिल्ला रही है? जबकि उसने तो सारी बात मामा जी को बता दिया था। उसे समझते देर नहीं लगती की ये सब राधा के मामा जी का किया हुआ है।
महेश बुझे हुए मन से राधा के कमरे में जाता है और उसके पास बैठता है। राधा मैंने कोई झूठ नहीं बोला है। तुम्हारे मामा जी को सब पता है। उन्होंने तुम्हे धोखे में रखा।
बेचारी राधा पे तो जैसे बिजली गिर गई हो। बीस बरस की उम्र में पहले तो पिता जी का गम फिर सपना टूटने का गम। अपने से पंद्रह साल बड़े लड़के से ब्याह हो जाने का दुःख ऊपर से दो बच्चो की माँ होने की ज़िम्मेदारी। ज़िन्दगी ने इतने दुःख उसे ही क्यों दिए ये सोचती हुई वो फुट फुट कर रोने लगी। महेश ने राधा को संभाला और कहा राधा तुम जो फैसला लोगी मुझे मंजूर होगा। तुम्हें मैं जबरदस्ती नहीं रख सकता अपने पास। तुम्हारे साथ गलत हुआ है और मैं भी इसका दोषी हूँ। मुझे तुमसे मिलकर ये सब बात बताना चाहिए था। लेकिन जो होना था वो तो हो गया। तुम चाहो तो अपने मामा मामी के घर जा सकती हो। और हाँ तुम्हारी पूरी ज़िम्मेदारी मेरी होगी। तुम वहाँ रह कर अपनी पढाई पूरी करना। और महेश इतना कह कर वहाँ से चला जाता है।
राधा महेश की बातों को सुन कर सोच में पड़ जाती है। कितने भले इंसान हैं महेश ,मैं इन्हें छोड़ कर नहीं जाउंगी। इन्होने अगर मेरी ज़िम्मेदारी ली है तो मैं इनके बच्चों की ज़िम्मेदारी उठाउंगी। कितने प्यारे बच्चे हैं। मैं इन्हें माँ की कमी महसूस नहीं होने दूंगी।
अध्याय 3
दूसरी सुबह महेश और राधा को पग फेरे की रसम के लिए मामा मामी के यहाँ जाना था। *(पग फेरे की रसम में लड़की को लेने उसके पिता जी या उसके भाई उसके ससुराल आते हैं। लड़की शादी के बाद विवाहिता के रूप में पहली बार अपने घर आती है और वहाँ कुछ दिन रहती है। इसी रस्म को पग फेरे की रस्म कहते हैं।)
राधा का सारा सामन ले कर महेश निकलने लगा तब राधा उसे रोकती है। रुकिए मेरा सामन रहने दीजिये मैं वापिस आउंगी। बच्चे कैसे रहेंगे माँ के बिना और मुझे भी इनकी चिंता रहेगी। महेश ये सब सुन कर विश्वास नहीं कर पा रहा था की क्या राधा सच में उसके बच्चों के साथ रहेगी ? क्या उसके बच्चों को उनकी माँ मिल गयी वापिस?
दोनों मुस्कुराते हुए मामा मामी के घर निकल जाते हैं।
ट्रिन ट्रिन…..दरवाजे की घंटी बजती है। और राधा अपने अतीत से बाहर आती है । हाय राम ! ये क्या ? मैंने तो चाय जला दिया और ये पकोड़े उफ्फ …कोयला हो गए हैं। बड़बड़ाती हुई दरवाजा खोलती है और महेश को अंदर आने के लिए बोलती है। महेश आज बहुत खुश थे। वो राधा के पीछे पीछे किचन में आ जाते हैं और किचन का हाल देख कर कुछ नहीं बोलते। राधा डरी हुई सी खड़ी हो जाती है। और महेश के चिल्लाने की प्रतीक्षा करती है।….हा हा हा हा ……ये क्या राधा, बच्चों के साथ तुम भी खेल रही थी क्या? सब जल गया है। राधा लम्बी सांस लेती हुई मुस्कुराती है।
महेश के लिए नमकीन ला कर राधा टेबल पे रखती है और बच्चों के कमरे की तरफ जाने लगती है। तभी महेश राधा का हाथ पकड़ लेता है और बोलता है, राधा रुको। राधा एक अलग एह्साह महसूस करती है और रुक जाती है। मन ही मन सोचती है , क्या बोलेंगे महेश ? और महेश एक लिफाफा राधा के हाथो में रख देता है। जी ये क्या है? महेश इशारे से बोलता है खोलो तो। राधा उसे खोलती है और एक चिट्ठी अंदर से निकाल कर पढ़ती है जिसमे लिखा होता है…
प्रिय राधा बधाई,
आपका हमारे ।AS अकादमी में स्वागत है …………
और राधा खुशी से झूम उठती है। और महेश के गले लग जाती है। मानो महेश ने आज उसके सपनो को पंख दे दिए हों।
अध्याय 4
राधा घर के कामों को निपटा कर बच्चों के कमरे में चली जाती है और अगली सुबह का बेसब्री से इंतज़ार करने लगती है। कल उसका अकादमी में पहला दिन होगा। तभी रोहन बोलता है मम्मा, आपको कहानी आती है? राधा बड़े प्यार से बोलती है, हाँ बेटा आती है , तुम दोनों सुनोगे? दोनों बच्चे बड़े खुशी से चिल्ला उठते हैं।
हाँ मम्मा ! वहीं दरवाजे पे खड़ा महेश मुस्कुराता हुआ निश्चिंत हो कर अपने कमरे की तरफ चल देता है।
आज राधा का पहला दिन है, उसके सपनो की ओर इसीलिए वो जल्दी जल्दी अपने घर के कामों को निपटा कर बच्चों को स्कूल बस के टाइम से पहले तैयार कर रही है। तभी महेश बोलते हैं , राधा तुम बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर के खुद भी तैयार हो जाओ , मैं दफ्तर जाते हुए तुम्हें अकादमी छोड़ आऊंगा। राधा मन ही मन बहुत खुश होती है और बस, जी अच्छा , बोल कर बच्चों को स्कूल बस के लिए बाहर ले जाती है। बाय बाय मम्मा। बाय रोहन बाय आरोही कहती हुई वो अंदर चली जाती है। अपने सपनो का उड़ान भरने के लिए तैयार हो जाती है।
अकादमी दूर होने से महेश और राधा रास्ते भर बच्चों के बारे में बातें करते हुए जाते हैं। तभी महेश को ऐसा लगता है की कोई परेशानी राधा को खाये जा रही है। और वो राधा से पूछता है , राधा क्या बात है , तुम खुश नहीं हो ? राधा उत्तर देती है, जी मैं बहुत खुश हूँ , पर क्या मैं सही कर रही हूँ ? अपने बच्चों के साथ? कितनी उमीदें हैं उन्हें मुझसे? क्या मैं अपने पढाई के साथ उनका ध्यान रख पाऊँगी ? मैं स्वार्थी तो नहीं न हो रही ? आप बताइये न।
महेश कहता है, राधा तुम बहुत कुछ कर सकती हो। ये मैं भरोसे के साथ कह सकता हूँ। और रही बात बच्चों के साथ अन्याय की तो, जिसके साथ हर वक़्त अन्याय हुआ हो वो दूसरों के साथ अन्याय तो नहीं होने देगा खासकर अपने बच्चों के साथ। तुम भरोसा रखो खुद पर सब हो जायेगा। और मैं तुम्हे घर के और बच्चों के काम के लिए नहीं लाया हूँ अपने जीवन में। तुमसे बस एक ही उम्मीद है। राधा पूछती है, और वो क्या है ? महेश कुछ नहीं बोलता है। बस एक झिझक के साथ मुस्कुराता है। राधा फिर से पूछती है, महेश बोलिये न। क्या उम्मीद है आपको मुझसे? इस बार महेश हिम्मत जुटा कर कहता है, प्यार की। मेरे बच्चों के लिए बहुत सारा और …। और क्या बोलिये न महेश। महेश बोलता है, और थोड़ा सा मेरे लिए भी। राधा ये सुन कर दूसरी तरफ पलट के रास्ता देखने लगती है और उसके मन में हो रहे इस नए एहसास और ख़ुशी को समेटे हुए महेश को वापस देखती हुई मुस्कुरा उठती है। महेश भी एक नए आनंद से भर जाता है। कुछ देर बाद राधा पूछती है जी मेरे अकादमी की छुट्टी तीन बजे होगी और बच्चे दो बजे ही घर आ जायेंगे, कैसे रहेंगे वो अकेले ?
महेश बोलता है राधा तुम बस मेरी और अपने पिता जी की उम्मीदों को पूरा करो बाकी मैं सँभाल लूंगा। मैंने मेरी बुआ को बोल दिया है हमारे घर के पास ही रहती है, की बच्चों को खाना खिला दे और तुम्हारे आने तक उनके साथ रहे।
राधा अकादमी में चली जाती। शाम के 3 :30 बजे जब राधा घर पहुँचती है, बच्चों को देख कर वो बहुत ख़ुश होती है लेकिन जब उसकी नजर सामने खड़े महेश पर पड़ती है तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता। जिज्ञासा में वो पूछती है आप इतनी जल्दी कैसे आ गए ? और महेश मुस्कुराता हुआ कहता है की हमारी कलेक्टर साहिबा का आज पहला ख़ुशी है और हम सब साथ न हो ऐसा कैसे हो सकता है? तो बताइये कलेक्टर साहिबा कैसा रहा आपका पहला दिन और सब बातें करने लगते हैं।
वक़्त बीतता चला जाता है। राधा रोज भोर के समय ही उठ कर अकादमी में हुए पढ़ाई को दोहराया करती थी। और फिर 6 बजे से लग जाती है अपने बच्चों और पति के स्कूल और दफ्तर की तैयारी में। रात को भी वो जल्दी काम निपटा लेती और बच्चों को सुला कर महेश के कमरे में देर रात तक पढ़ा करती थी। उसको तो जैसे अपनी ज़िन्दगी में एक पल भी अपने लिए समय ना रहा हो। पर महेश जैसे पति को पाकर अपने को भाग्यशाली मानती थी।
अध्याय 5
एक साल बाद …..
आज राधा के UPSC परीक्षा का दिन है, उसके UPSC के सफर का पहला पड़ाव । वो बहुत घबराई हुई है। महेश के कमरे में जाती है। महेश उसकी घबराहट को भांपते हुए बोलता है, जानती हो राधा तुम्हारा तो पता नहीं पर मुझे पक्का विश्वास है की मैं कलेक्टर का पति बनने वाला हूँ, और मुस्कुराता है। परीक्षा हो जाती है और राधा महेश के उमीदों पे खरी भी उतरती है। उसने पहला पड़ाव पार कर लिया है।
राधा को अब और मेहनत की जरुरत थी। और वो बच्चों के लिए बहुत ही कम समय दे पा रही थी। उसी बीच महेश की भी तबियत बिगड़ गई, और राधा टूट सी गयी। उससे घबराहट के मारे कुछ ठीक से नहीं हो पा रहा था। वो परेशानी और समय को देखते हुए महेश को बोलती है, महेश मैं हार गयी अब मैं नहीं बन पाऊँगी आपकी कलेक्टर साहिबा। मुझे मेरे सपनो से ज्यादा आप और बच्चे प्यारे हैं। आप लोगों के साथ अन्याय नहीं करुँगी अब, और वो सोने चली जाती है। दूसरे दिन राधा अकादमी भी नहीं जाती और बच्चों के साथ लगी रहती है। तभी शाम को दरवाजे की घंटी बजती है और दरवाजा खोलते ही राधा चौंक जाती है। दरवाजे पे उसके माता पिता होते हैं। माँ ! पापा ! आप लोग यहां कैसे और तबियत कैसी है अब ? और अंदर ले जाती है दोनों को। चाय नास्ते के बाद माँ राधा के कमरे में जाती है और सारी बात बताती है की कैसे महेश ने उन्हें अपने घर बुलाया और अब वो लोग यही रहेंगे। पिता जी का इलाज भी हो जायेगा और बच्चों को मैं सँभाल लूँगी। राधा तुम बस अपने पापा और फ़रिश्ते जैसे पति की उमीदों को पूरा कर बिटिया। और राधा अपने फ़रिश्ते जैसे पति को मन में बसा कर माँ के गले लग जाती है।
कुछ महीने बाद …..
राधा के घर पे आज बहुत भीड़ है, और वो भीड़ कोई और नहीं दोस्तों, रिश्तेदारों और पत्रकारों से लगी है। क्यूंकि आज राधा ने महेश के सपने को पूरा किया था। राधा महेश के कमरे में जाती है और गले से लग जाती है। आपकी जीत हुई है महेश। मैं ये सब कभी नहीं कर पाती अगर आपका साथ नहीं होता।
राधा अपने आईएएस के ट्रेनिंग के लिए चली जाती है। इधर महेश की तबियत फिर खराब हो जाती है, पर महेश के मना करने पर घरवाले उसे कुछ नहीं बताते। राधा अपनी ट्रेनिंग पूरी कर के घर लौटती है और सीधा महेश से मिलने को जाती है, और जो देखती है वह उसके लिए बहुत मुश्किल था। महेश बिस्तर पे पड़ा होता है, और बहुत ही कमजोर होता है। वह महेश से लिपट जाती है, ये आपको क्या हुआ ? मुझे किसी ने क्यों नहीं बताया? माँ माँ…..माँ वो रोती हुई माँ को पुकारती है। क्यों नहीं बताया आपलोगों ने मुझे ? महेश बस मुस्कुराता हुआ अलमारी के तरफ इशारा करता है। वह कुछ बोल नहीं पाता। राधा दौड़ कर अलमारी खोलती है। वहाँ उसे एक लिफाफा मिलता है, जिसमे एक चिट्ठी मिलती है, जो महेश ने लिखा था।
…मेरी कलेक्टर साहिबा,
मैं तुमसे माफ़ी चाहता हूँ की मैंने तुम्हे कुछ नहीं बताया। पर राधा मुझे एक साल पहले ही पता चला की मुझे जानलेवा बीमारी है। मैं तुम्हे बताना चाहता था लेकिन नहीं बता पाया। मेरे बच्चों को एक हिम्मत वाली माँ की जरुरत थी।
राधा मेरे बाद तुम कैसे संभालती परिवार को? तुम्हे तो कलेक्टर बनना ही था, मेरे लिए तुम्हारे पिता के लिए, और सबसे ज्यादा हमारे बच्चों के लिए। मेरी एक उम्मीद तो तुमने जी जान से पूरा किया राधा। एक आखरी उम्मीद के साथ मैं बिदा लेना चाहता हूँ। तुम मेरी राधा और मेरे बच्चों को कभी मेरी कमी महसूस नहीं होने देना। और हिम्मत रखना मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा।
तुम्हारा महेश …
राधा चिट्ठी पढ़ कर स्तब्ब्ध रह जाती है। और महेश के पास जा कर बोलती है, मैं इतनी अभागी क्यों हूँ महेश? जवाब दीजिये मुझे। मुझसे मेरी ज़िन्दगी हर बार क्यों छीन जाती है? महेश कोई जवाब नहीं दे पाता और हमेशा के लिए अपनी आँखें बंद कर लेता है।
राधा बच्चों को सीनेसे लगा कर बस इतना बोल पाती है, तुम्हारी माँ के जैसा नसीब किसी का न हो मेरे बच्चों। और राधा के चीत्कार से पूरा घर काँप जाता है। कैसी अभागी हूँ मैं माँ, कैसी अभागी?
Happy ending karna tha na…. Kya aaplog pandemic time m rulane m lage ho …
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part 2 me is baat ka dhyan rakhenge.Thanks for your valuable comments.
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Plz upload next part of story….
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very soon Simran. we are working on part 2 of this story.
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Please upload next part of story….
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Admirable story🙏
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Thanks Mayank
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शानदार प्रस्तुति। इसे थोड़ा और रोचक बनाया जा सकता था। खैर बोलने और करने में फर्क होता है। आपने अच्छा लिखा है।
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धन्यवाद राजेश। हमारी पूरी कोशिश रहेगी की इसके अगले भाग में कहानी को और रोचक बनाया जाये।
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A great piece of writing
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Thank you Sabbir
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Nice story
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Thanks for your valuable comments.
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Very nice story… We want part 2
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Thank you so much. we have planned to come up with second part of this story very soon. we will notify you when it is uploaded here on the website.
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Heart touching story good effort
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Thank you so much. Please read part 2 of this story very soon on our website.
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Good going keep it up 👍👌😍
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Thank you so much. please do not forget to read part 2 of this story. it will be uploaded very soon.
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Nice👌
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Thank you Surbhi
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Aaj padha Maine… Sach me bahut achhi hai ye story. Waiting for part -2
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Thankyou …part 2 is coming soon…!
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